सूर्यनमस्कार का महत्त्व, विधि और मंत्र
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आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं नोपजायते ..
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अर्थ: जो लोग सूर्यको प्रतिदिन नमस्कार करते हैं, उन्हें सहस्रों जन्म दरिद्रता प्राप्त नहीं होती।
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सूर्य-नमस्कार को सर्वांग व्यायाम भी कहा जाता है, समस्त यौगिक क्रियाऒं की भाँति सूर्य-नमस्कार के लिये भी प्रातः काल सूर्योदय का समय सर्वोत्तम माना गया है। सूर्यनमस्कार सदैव खुली हवादार जगह पर कम्बल का आसन बिछा खाली पेट अभ्यास करना चाहिये.इससे मन शान्त और प्रसन्न हो तो ही योग का सम्पूर्ण प्रभाव मिलता है।
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प्रथम स्थिति- स्थितप्रार्थनासन
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सूर्य-नमस्कार की प्रथम स्थिति स्थितप्रार्थनासन की है.सावधान की मुद्रा में खडे हो जायें.अब दोनों हथेलियों को परस्पर जोडकर प्रणाम की मुद्रा में हृदय पर रख लें.दोनों हाथों की अँगुलियाँ परस्पर सटी हों और अँगूठा छाती से चिपका हुआ हो। इस स्थिति में आपकी केहुनियाँ सामने की ऒर बाहर निकल आएँगी.अब आँखें बन्द कर दोनों हथेलियों का पारस्परिक दबाव बढाएँ। श्वास-प्रक्रिया निर्बाध चलने दें।
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द्वितीय स्थिति - हस्तोत्तानासन या अर्द्धचन्द्रासन
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प्रथम स्थिति में जुडी हुई हथेलियों को खोलते हुए ऊपर की ऒर तानें तथा साँस भरते हुए कमर को पीछे की ऒर मोडें.गर्दन तथा रीढ की हड्डियों पर पडने वाले तनाव को महसूस करें.अपनी क्षमता के अनुसार ही पीछे झुकें और यथासाध्य ही कुम्भक करते हुए झुके रहें।
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तृतीय स्थिति - हस्तपादासन या पादहस्तासन
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दूसरी स्थिति से सीधे होते हुए रेचक (निःश्वास) करें तथा उसी प्रवाह में सामने की ऒर झुकते चले जाएँ। दोनों हथेलियों को दोनों पँजों के पास जमीन पर जमा दें। घुटने सीधे रखें तथा मस्तक को घुटनों से चिपका दें यथाशक्ति बाह्य-कुम्भक करें। नव प्रशिक्षु धीरे-धीरे इस अभ्यास को करें और प्रारम्भ में केवल हथेलियों को जमीन से स्पर्श कराने की ही कोशिश करें।
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चतुर्थ स्थिति- एकपादप्रसारणासन
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तीसरी स्थिति से भूमि पर दोनों हथेलियाँ जमाये हुए अपना दायाँ पाँव पीछे की ऒर फेंके.इसप्रयास में आपका बायाँ पाँव आपकी छाती केनीचे घुटनों से मुड जाएगा, जिसे अपनी छाती से दबाते हुए गर्दनपीछे की ऒर मोडकर ऊपर आसमान कीऒर देखें.दायाँ घुटना जमीन पर सटा हुआ तथा पँजा अँगुलियों पर खडा होगा। ध्यान रखें, हथेलियाँ जमीन से उठने न पायें.श्वास-प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती रहे।
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पंचम स्थिति- भूधरासन या दण्डासन
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एकपादप्रसारणासन की दशा से अपने बाएँ पैर को भी पीछे ले जाएँ और दाएँ पैर के साथ मिला लें .हाथों को कन्धोंतक सीधा रखें। इस स्थिति में आपका शरीर भूमि पर त्रिभुज बनाता है, जिसमें आपके हाथ लम्बवत् और शरीर कर्णवत् होते हैं.पूरा भार हथेलियों और पँजों पर होता है। श्वास-प्रक्रिया सामान्य रहनी चाहिये अथवा केहुनियों को मोडकर पूरे शरीर को भूमि पर समानान्तर रखना चाहिये। यह दण्डासन है।
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षष्ठ स्थिति - साष्टाङ्ग प्रणिपात
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पंचम अवस्था यानि भूधरासन से साँस छोडते हुए अपने शरीर को शनैःशनैः नीचे झुकायें। केहुनियाँ मुडकर बगलों में चिपक जानी चाहिये। दोनों पँजे, घुटने, छाती, हथेलियाँ तथा ठोढी जमीन पर एवं कमर तथा नितम्ब उपर उठा होना चाहिये। इस समय 'पूष्णे नमः' इस मन्त्र का जप करना चाहिये। कुछ योगी मस्तक को भी भूमि पर टिका देने को कहते हैं।
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सप्तम स्थिति - सर्पासन या भुजङ्गासन
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छठी स्थिति में थॊडा सा परिवर्तन करते हुए नाभि से नीचे के भाग को भूमि पर लिटा कर तान दें। अब हाथों को सीधा करते हुए नाभि से उपरी हिस्से को ऊपर उठाएँ। श्वास भरते हुए सामने देखें या गरदन पीछे मोडकर ऊपर आसमान की ऒर देखने की चेष्टा करें। ध्यान रखें, आपके हाथ पूरी तरह सीधे हों या यदि केहुनी से मुडे हों तो केहुनियाँ आपकी बगलों से चिपकी हों।
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अष्टम स्थिति- पर्वतासन
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सप्तम स्थिति से अपनी कमर और पीठ को ऊपर उठाएँ, दोनों पँजों और हथेलियों पर पूरा वजन डालकर नितम्बों को पर्वतशृङ्ग की भाँति ऊपर उठा दें तथा गरदन को नीचे झुकाते हुए अपनी नाभि को देखें।
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नवम स्थिति - एकपादप्रसारणासन (चतुर्थ स्थिति)
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आठवीं स्थिति से निकलते हुए अपना दायाँ पैर दोनों हाथों के बीच दाहिनी हथेली के पास लाकर जमा दें। कमर को नीचे दबाते हुए गरदन पीछे की ऒर मोडकर आसमान की ऒर देखें .बायाँ घुटना जमीन पर टिका होगा।
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दशम स्थिति – हस्तपादासन
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नवम स्थिति के बाद अपने बाएँ पैर को भी आगे दाहिने पैर के पास ले आएँ। हथेलियाँ जमीन पर टिकी रहने दें। साँस बाहर निकालकर अपने मस्तक को घुटनों से सटा दें। ध्यान रखें, घुटने मुडें नहीं, भले ही आपका मस्तक उन्हें स्पर्श न करता हो।
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एकादश स्थिति - (हस्तोत्तानासन या अर्धचन्द्रासन)
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दशम स्थिति से श्वास भरते हुए सीधे खडे हों। दोनों हाथों की खुली हथेलियों को सिर के ऊपर ले जाते हुए पीछे की ऒर तान दें .यथासम्भव कमर को भी पीछे की ऒर मोडें।
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द्वादश स्थिति -स्थित प्रार्थनासन (प्रथम स्थिति)
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ग्यारहवीं स्थिति से हाथों को आगे लाते हुए सीधे हो जाएँ। दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में वक्षःस्थल पर जोड लें। सभी उँगलियाँ परस्पर जुडी हुईं तथा अँगूठा छाती से सटा हुआ। कोहुनियों को बाहर की तरफ निकालते हुए दोनों हथेलियों पर पारस्परिक दबाव दें।
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सूर्य नमस्कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्येक बार सूर्य मंत्रो के उच्चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्न है-
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1.
ॐ मित्राय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सूर्याय नमः, 4.ॐ भानवे नमः, 5.ॐ खगाय नमः, 6. ॐ पूष्णे नमः,7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः, 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः, 12. ॐ भास्कराय नमः, 13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः
2.
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सूर्यनमस्कार के लाभ
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सभी महत्त्वपूर्ण अवयवोंमें रक्तसंचार बढता है।
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सूर्य नमस्कार से विटामिन-डी मिलता है जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं।
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आँखों की रोशनी बढती है।
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शरीर में खून का प्रवाह तेज होता है जिससे ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है।
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सूर्य नमस्कार का असर दिमाग पर पडता है और दिमाग ठंडा रहता है।
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पेटके पासकी वसा (चरबी) घटकर भार मात्रा (वजन) कम होती है जिससे मोटे लोगों के वजन को कम करने में यह बहुत ही मददगार होता है।
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बालों को सफेद होने झड़ने व रूसी से बचाता है।
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क्रोध पर काबू रखने में मददगार होता है।
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कमर लचीली होती है और रीढ की हडडी मजबूत होती है।
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त्वचा रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
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हृदय व फेफडोंकी कार्यक्षमता बढती है।
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बाहें व कमरके स्नायु बलवान हो जाते हैं ।
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कशेरुक व कमर लचीली बनती है।
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पचनक्रियामें सुधार होता है।
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मनकी एकाग्रता बढती है।
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जानकारों के मुताबिक सूर्य नमस्कार करते समय आप अपनी तंत्रिकाओं को पेल्विक बोन की ओर फैलाते और संकुचित करते हैं. यह सेक्स का मुख्य बिंदु भी है। सूर्य नमस्कार सेक्स हार्मोन्स को और संचालित करता है जिससे सेक्स लाइफ बेहतर होती है. इतना ही नहीं सूर्य नमस्कार का कुंडलिनी योग बायो-एनर्जी के निर्माण में मदद करता है, जो सेक्स हार्मोन्स को संचालित करता है।
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How to do the Surya namaskar
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